आईआईटी दिल्ली में एक छात्र की मृत्यु के बाद, संस्थान ने कैंपस के माहौल और प्रक्रियाओं की जांच के लिए एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया था. इसमें मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ, संस्थान के सदस्य और पूर्व छात्र शामिल थे. आईआईटी दिल्ली के अनुसार, इस समिति द्वारा इंगित किए गए अधिकांश कारणों में अत्यधिक प्रतिस्पर्धी माहौल, प्रवेश परीक्षा प्रणाली और कोचिंग संस्कृति से जुड़ी समस्याएं, जाति, लिंग और अन्य सामाजिक पहचान से जुड़े पूर्वाग्रह व भेदभाव शामिल हैं.
ऐसे अधिकांश कारक पहले से ही आईआईटी की जानकारी में थे. इन मुद्दों से निपटने के लिए कुछ प्रक्रियाएं पहले से थीं. हालांकि, समिति ने इन उपायों को और मजबूत व प्रभावी बनाने की आवश्यकता जताई है. साथ ही कुछ नए उपायों को भी अपनाने की सिफारिश की है.
इसके साथ ही माहौल को और अधिक प्रभावी बनाने का प्रयास है. रिपोर्ट को अब संस्थान के बोर्ड ऑफ गवर्नर्स के सामने भी रखा जाएगा. बोर्ड, रिपोर्ट में की गई सिफारिशों को लागू करने के लिए विशिष्ट कदम उठाने की पहल करेगा.
आईआईटी दिल्ली का कहना है कि संस्थान यह भी मानता है कि समिति द्वारा इंगित की गई समस्याएं केवल आईआईटी दिल्ली तक सीमित नहीं हैं. प्रवेश परीक्षा की प्रतिस्पर्धी प्रकृति, शैक्षणिक वातावरण और सामाजिक पूर्वाग्रह जैसी समस्याएं एक व्यापक व प्रणालीगत चुनौतियां हैं. संस्थान जहां एक ओर अपने कैंपस के भीतर इन मुद्दों को हल करने के लिए प्रतिबद्ध है, वहीं दूसरी ओर अन्य आईआईटी और हितधारकों के साथ मिलकर जेईई जैसी परीक्षाओं में भी इन मुद्दों पर व्यापक स्तर पर काम करने के लिए तैयार है.
संस्थान का कहना है कि वह इस स्थिति को लेकर संवेदनशील है और पहले से ही छात्रों का मानसिक कल्याण सुनिश्चित करने के लिए कई कदम उठा चुके हैं. इसके साथ ही, वह इस दिशा में और भी उपाय करने के लिए प्रतिबद्ध और तैयार है. छात्रों के मानसिक तनाव को दूर करने के लिए संस्थान नियमित रूप से विभिन्न माध्यमों के जरिए छात्रों के साथ संवाद भी कर रहा है. यह पहल इसलिए की गई है ताकि छात्रों की समस्याओं को बेहतर ढंग से समझा जा सके. इससे छात्रों की समस्याओं के सर्वोत्तम समाधान खोजे जा सकेंगे.
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